नई दिल्ली, 8 मई
इसे सुनवाई योग्य नहीं बताते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय ने बुधवार को एक याचिकाकर्ता पर एक लाख रुपये का जुर्माना लगाया, जिसने मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के लिए न्यायिक हिरासत से शासन करने की अनुमति और सुविधाएं मांगी थीं।
वकील श्रीकांत प्रसाद द्वारा दायर जनहित याचिका में निर्बाध शासन सुनिश्चित करने के लिए सीएम केजरीवाल को कैबिनेट मंत्रियों के साथ जुड़ने के लिए वर्चुअल कॉन्फ्रेंसिंग व्यवस्था की सुविधा देने की मांग की गई है। इसने मीडिया घरानों को सीएम के संभावित इस्तीफे और राष्ट्रीय राजधानी में राष्ट्रपति शासन लगाए जाने के बारे में सनसनीखेज खबरें देने से रोकने की भी मांग की।
बुधवार को कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने कहा कि चूंकि सीएम केजरीवाल ने ईडी द्वारा अपनी गिरफ्तारी को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में पहले ही एक रिट याचिका दायर कर दी है और शीर्ष अदालत अंतरिम रिहाई के मुद्दे पर विचार कर रही है, इसलिए उन्हें अनुमति देने का कोई आदेश नहीं है। जनहित याचिका में वर्चुअल कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए कैबिनेट मंत्रियों से बातचीत करने की बात कही गई है।
पीठ ने कहा कि वह न तो मीडिया को विचार प्रसारित न करने का निर्देश देकर सेंसरशिप लगा सकती है और न ही राजनीतिक विरोधियों को केजरीवाल के इस्तीफे की मांग करने वाले बयान देने से रोक सकती है।
जनहित याचिका में भाजपा दिल्ली अध्यक्ष वीरेंद्र सचदेवा पर निशाना साधते हुए आरोप लगाया गया था कि उनके विरोध और बयान सीएम केजरीवाल के इस्तीफे के लिए अनुचित दबाव बनाते हैं, राजनीति से प्रेरित इरादों के साथ शांति और यातायात प्रवाह को बाधित करते हैं।
पीठ ने एम्स को एक लाख रुपये का जुर्माना भरने की शर्त के साथ जनहित याचिका खारिज कर दी।
अदालत ने जनहित याचिका की आलोचना करते हुए पूछा, “हम क्या करें? आपातकाल लागू करें? सेंसरशिप या मार्शल लॉ लागू करें? हम प्रेस और राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों के ख़िलाफ़ कैसे प्रतिबंध लगाने के आदेश पारित कर सकते हैं?”
प्रसाद की याचिका में दिल्ली के शासन के सराहनीय ट्रैक रिकॉर्ड पर जोर दिया गया, खासकर पिछले सात वर्षों में शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा क्षेत्रों में। इसका तर्क है कि राष्ट्रीय राजधानी में वर्तमान परिस्थितियाँ भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21, 14 और 19 के तहत मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करती हैं।
यह कहते हुए कि न तो संविधान और न ही कोई कानून मुख्यमंत्रियों या प्रधानमंत्रियों सहित मंत्रियों को जेल से शासन करने से रोकता है, प्रसाद की याचिका ने लोगों के कल्याण के लिए शासन में निरंतरता सुनिश्चित करने की आवश्यकता का हवाला देते हुए मामले की तात्कालिकता पर जोर दिया।
याचिका में सीएम केजरीवाल की कैद के बीच दिल्ली के असाधारण शासन का हवाला देते हुए, शराब नीति मामले में कथित राजनीतिक उद्देश्यों और झूठे निहितार्थों का हवाला देते हुए अदालत से शीघ्र विचार करने का आग्रह किया गया है।