श्री फतेहगढ़ साहिब/19 अप्रैल:
(रविंदर सिंह ढींडसा)
आयुर्वेद के क्षेत्र में उत्कृष्टता और समर्पण के अद्वितीय उत्सव में, विश्वभर में प्रसिद्ध भारत की प्रतिष्ठित आयुर्वेदिक संस्था वैद्यरत्नम् औषधशाला ने आयुर्वेदिक शल्य चिकित्सा विज्ञान में ऐतिहासिक योगदान के लिए डॉ. हितेन्द्र सूरी को सम्मानित किया है। केरल की अष्टवैद्य परंपरा जो भगवान धन्वंतरि के वंशजों और भगवान परशुराम के शिष्यों से जुड़ी है की विरासत को संजोते हुए, वैद्यरत्नम् औषधशाला कई पीढ़ियों से पारंपरिक उपचार की मशाल को जलाए हुए है। आज इसे एलेदथ थैक्काटु मूस्स परिवार के पांचवीं पीढ़ी के अष्टवैद्यों डॉ. ई.टी. यदु नारायणन मूस्स और डॉ. ई.टी. कृष्णन मूस्स के नेतृत्व में चलाया जा रहा है, जो प्रामाणिक आयुर्वेदिक पद्धतियों को बनाए रखने के लिए समर्पित हैं।अपनी इसी दृष्टि के अंतर्गत संस्था ने 117 सेंटीमीटर लंबी जटिल भगंदर (फिस्टुला-इन-ऐनो) को पारंपरिक क्षारसूत्र तकनीक से सफलतापूर्वक उपचारित करने के लिए डॉ. सूरी को सम्मानित किया। यह शल्य चिकित्सा न केवल प्राचीन आयुर्वेदिक विधियों को पुनर्जीवित करती है, बल्कि इसने भारत की चिकित्सा विरासत को वैश्विक मंच पर पहचान दिलाई। इस ऐतिहासिक उपलब्धि की स्मृति में, वैद्यरत्नम् औषधशाला के पंजाब एरिया मैनेजर श्री नीरज शुक्ला ने व्यक्तिगत रूप से डॉ. सूरी को यह सम्मान प्रदान किया, जो उनके अनूठे योगदान के प्रति संस्था के सम्मान को दर्शाता है।इसके अतिरिक्त, डॉ. सूरी को "अनुरेक्टल रोगों में अनुभव साझा करना" विषयक एक ऑनलाइन सत्र में विशेषज्ञ वक्ता के रूप में भाग लेने के लिए प्रशंसा-पत्र भी प्रदान किया गया। उनके चिकित्सकीय अनुभवों ने इस शैक्षणिक पहल को समृद्ध किया और देशभर के आयुर्वेदिक चिकित्सकों को प्रेरित किया।राजकीय आयुर्वेदिक कॉलेज, पटियाला के पूर्व छात्र, डॉ. हितेन्द्र सूरी का करियर 55 प्रतिष्ठित पुरस्कारों और 21 राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय रिकॉर्ड्स से सुसज्जित है। विशेष रूप से, उन्हें 2018 में धन्वंतरि पुरस्कार, जो आयुर्वेद के क्षेत्र में सर्वोच्च सम्मान है, से नवाज़ा गया। आयुर्वेदिक स्वास्थ्य सेवाओं व शल्य चिकित्सा में उनके योगदान ने उन्हें एक प्रेरणास्रोत बना दिया है।डॉ. सूरी को सम्मानित कर, वैद्यरत्नम् औषधशाला न केवल अष्टवैद्य परंपरा को संरक्षित करने की अपनी प्रतिबद्धता दर्शा रही है, बल्कि आयुर्वेद में नवाचार व उत्कृष्टता को भी बढ़ावा दे रही है। डॉ. सूरी की उपलब्धियां न केवल व्यक्तिगत जीत हैं, बल्कि आयुर्वेद को वैश्विक मान्यता दिलाने की दिशा में एक विशाल कदम हैं।